मधुकर
सागरों के बीच में,
उठ रही हैं ख्वाहिशें!
बैठकर साहिल पर यूँ .
रो रहीं हैं बंदिशें...
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
नाज़
उन्हें नाज़ है तो छुपा कर रखें ..
हम तो बेताज बादशाह हैं,
हमने कभी सर झुकाना नही सीखा ....
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स्मार्ट फोन की तितली में तितलियों से ज़्यादा रंग हैं
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