मेरे गीतों का , साज़ बन गयीं हो तुम
हर लब्ज़ की जुबान बन गयीं हो तुम ,
कलम भी चलती है तुम्हारी यादों को लेकर
मेरे बहके क़दमों की पहचान बन गयीं हो तुम ,
सागरों के बीच में,
उठ रही हैं ख्वाहिशें!
बैठकर साहिल पर यूँ .
रो रहीं हैं बंदिशें...