गुरुवार, 1 मार्च 2012


मेरे गीतों का , साज़ बन गयीं हो तुम  

हर लब्ज़ की जुबान बन गयीं हो तुम ,

कलम भी चलती है तुम्हारी यादों को लेकर  

मेरे बहके क़दमों की पहचान बन गयीं हो तुम  ,

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

नाज़

उन्हें नाज़ है तो छुपा कर रखें ..
हम तो बेताज बादशाह हैं,
हमने कभी सर झुकाना नही सीखा ....

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

तितली सी चंचल


तितली है वो इठलाती
फूल फूल पर मंडराती
इक पल को सामने आती वो
पल भर में ओझल हो जाती

रंगों की दुनिया को लेकर
रंगों की खोज में घूम रही
लेकर मन में चंचल सपने
अपनी ही धुन में झूम रही

पंखों को फैलाकर अपने
अम्बर को छूने निकली है
आकाश अनंत ये उसका है,
माना नन्ही वो तितली है.

रंग नहीं ये सपना है,
जो मुझको वो दिखलाती है,
उसको पाने की चाहत में,
चाहत मेरी उड़ जाती है.

कहने को कह दें हम लेकिन,
जो कहा अभी मुश्किल होगी,
जो बात गयी वो बात गयी,
वो बात कहाँ अब फिर होगी.

देख के उसकी कोमल काया
मेरा मन भी भर आता है
वो आये अगर तो अच्छा हो
*मधुकर* खुशुबू बिखराता
है

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

कैसे भूलूँ वो दिन



आज जब मैं गुज़रा
उन राहों से
तो यादें...
फिर से..
ताज़ा हो गयीं,
जहाँ बिखरी हैं यादें
खुशबू की तरह
मेरे बचपन की...



वही हवा,वही पानी
वही खुशबू
मेरे गाँव की मिटटी की
जिसने मेरे बचपन को..
जवानी की दहलीज दिखायी



बदले हैं तो बस
कुछ चेहरे..
जो नए हैं..
मेरे लिए.
मैं उनके लिए,
टक- टकी लगी थी
मुझ पर...
जैसे की अजनबी हो कोई
गाँव में .....



उन गलियों को देखा तो
आँखें भर आयीं..
जहाँ कभी...
आँख मिचोली का खेल खेलते थे
और हाँ.....कभी-कभी
गली के कुत्ते भी दौडाते थे
मेरे घर तक..
और...
और मैं सहमा सा
लिपट जाता था
माँ के आँचल से...



अब भी वहीँ फैला है
माँ का प्यार, माँ का दुलार
और मेरा बचपन,
घर के आँगन में
जहाँ कभी...
माँ चंदा मामा की कहानियां सुनती थी
और मैं सो जाता था
सब कुछ भूल कर..
उसकी गोद में....



बचपन के खेल बड़े निराले होते हैं
मैं भी खेलता था
कुछ ज्यादा ही निराले खेल,
पेड़ की डाल पर चड़कर
छुआ-छुपी का खेल
झटक कर डाल से कूदना
और फिर चढ़ जाना
और कभी-कभी..
डाल से गिर जाना..
और कराहते हुए घर आना ..



खेत-खलिहानों के वो
टेढ़े-मेढ़े रास्ते..
जिन पर कभी
चलना मुश्किल होता था
आज भी वैसे ही हैं
जैसे वो मेरा इंतजार कर रहे हों
मेरे आने का..
और उन पर चलने का



पंछियों का वो..
एक सुर में चहकना
कोयल की वो कूक
पपीहे की वो आवाजें
सब कुछ वही है
बचपन के जैसा
नहीं है तो बस
मेरा बचपन.
मेरा प्यारा निराला बचपन
........कैसे भूलूँ वो दिन..........


बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

कृष्ण प्रेम


पनघट पै बैठी पनिहारन ...
पनिया कौ भरन गयीं गागर मै
छैल छबीलो किशन कन्हैया
ढूंढ रहो तोहे बागन मै...

गोपियन संग तुने रास रचायो
सबही तौ तेरे प्रेम दिवाने हैं..
बंसुरिया की धुन पै सबको...
अपने रंग नाच नचायो है

ओ मैया के नटखट नंदलाला...
कैसो ये रास रचायो है
हर कोई तेरी धुन मै नाचै
ये कैसो प्रेम रंग बरसायो है...

हमहू तौ तेरे प्रेम दिवाने
तेरे रूप रंग पै बारे हैं
अपनों जीवन सब तुझकौ दियो...
अब तौ लागै सब कुछ बेगानों है...

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

सपनों का सौदागर




मैं सपनों का सौदागर
इन्हें बेंचनें आया हूँ ,
इनका कोई मोल नहीं
तुझे सौंपनें आया हूँ

मेरे सपने बुने हुए हैं
तुझसे सारे जुड़े हुए हैं,
देख ज़रा तू आकर, इनको
तेरी यादों से बंधे हुए हैं

इनको मनमाला में पिरोकर
प्यार के धागे से बांधा है,
सांसों की डोर को थामे रखना
तू ही तो भोर का तारा है

सदियों से मैं चलता आया
तेरी ही उम्मीद लिए,
इन सपनों को सच कर दे तू
*मधुकर* बैठा है आस लिए .....
................................

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

प्रेम पुष्प





















तेरे ही सपने देखें हैं
तुझको ही अपना माना है,
याद में तेरी अब मुझको
क्यों लगता सब बेगाना है

तन्हा सी तपती आँखों में
जब याद तुम्हारी आती हैं,
ख्वाबों के मंदिर में जाकर
वो प्रेम पुष्प बरसाती है.

सामने जब तू आती है
दिल में हलचल सी होती है,
जीना मुश्किल हो जाता है.
कोई अनबन सी होती है.

मैंने भी तेरी पलकों को
प्यार में झुकते देखा है,
झील सी तेरी आँखों में
ख्वाबों को पलते देखा है.

तेरे घर के एक कोने में
थोड़ी सी जगह तो पाई है,
लता पे आई नव कलियों ने
'मधुकर' खुशबू महकाई है.