शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

तितली सी चंचल


तितली है वो इठलाती
फूल फूल पर मंडराती
इक पल को सामने आती वो
पल भर में ओझल हो जाती

रंगों की दुनिया को लेकर
रंगों की खोज में घूम रही
लेकर मन में चंचल सपने
अपनी ही धुन में झूम रही

पंखों को फैलाकर अपने
अम्बर को छूने निकली है
आकाश अनंत ये उसका है,
माना नन्ही वो तितली है.

रंग नहीं ये सपना है,
जो मुझको वो दिखलाती है,
उसको पाने की चाहत में,
चाहत मेरी उड़ जाती है.

कहने को कह दें हम लेकिन,
जो कहा अभी मुश्किल होगी,
जो बात गयी वो बात गयी,
वो बात कहाँ अब फिर होगी.

देख के उसकी कोमल काया
मेरा मन भी भर आता है
वो आये अगर तो अच्छा हो
*मधुकर* खुशुबू बिखराता
है

4 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत...ऐसा लिखने वाले मिलते कहाँ है...और ऐसा सोचने वाले तो विरले ही होते हैं...


    बधाई और धन्यवाद...

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  2. आकाश अनंत ये उसका है,
    माना नन्ही वो तितली है.
    khwahishe to dekhiye....

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  3. खुशबू बिखराये वक्त हो गया मधुकर भाई..

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